नेहरु के जाते भारत में, लाल बहादुरजी आये |
दृण निश्चय सत्य सादगी को, भारत सनेह सह फैलाये ||१||
तू चिंतहीन रोगी जैसा, अथवा अतीत का मनन शील |
अपनी उलझन सुलझाने में, वन्धुत्व विश्व लहि यत्नशील ||२||
पर अरि दल बल से जगा हुआ, तेरे उत्तर में काश्मीर |
कर कपट, कुचाल चलाने में , षड़यंत्र रचा होकर अधीर ||३||
सोचा इस्लाम धर्म खातिर, जम्बू के सच्चे मुसलमान |
विद्रोह करेंगे हिल-मिल कर, जय प्राप्त करेगा पाक-थान ||४||
तव कलित कली की सुन्दरता, कोमलता लता समान सभी |
कंचन कामिनी कर्ण वाला, करगत होंगी वे वेगि अभी ||५||
कचनार कली रस भरी सरस, संतरा अनार मधुमय रसाल |
उनका रस लेने काश्मीर, दुश्मन का बेहाल हाल||६||
पर भावी विधि के वशीभूत, उस पर न किसी की चलती है |
नापाक पाक की छलना सब, उस चतुरानन को खलती है ||७||
काले कबालियों की छुटपुट घुसपैंठ अगस्त पाँच से थी |
प्रेरक पाकिस्तानी सेना, खिलबाड़ हिंद आँच से थी ||८||
धीरे धीरे बढ़कर वे ही इक अनी स्वरुप सितम्बर को |
तेरी पृथ्वी को काश्मीर, ढक दिया तुम्हारे अम्बर को ||९||
बादल दल सा तब उमड़ घुमड़ मुस्लिम समुदाय भयावन था |
गोली-गोला झड़ वृष्टि सरिस, पर भारत सैन्य पवन घन था ||१०||
दिशि-विदिशि ओर से घिर घिर कर, दानव अयूब चढ़ते आते |
भारत झंझा के वेगों से वे तितर वितर होते जाते ||११||
हो गया प्रकम्पित गिरिकानन, शिवशंकर आसन डोल उठा |
भ्रू भंग अंग अंगड़ाई ले, डमरू डिम डिम बम बोल उठा ||१२||
अचला चल अचल चलायमान, दिक्पाल निमग्न विचारों में |
रसिया, अमरीका,मिश्र, अरब, पड़ गए ब्रिटेन विचारोंमें ||१३||
निम्मो जनरल ने प्रकट किया , आक्रामक मियां अयूब हुए |
भुट्टो भय से ऊथांत वदन, चिर बंद हुआ मनहूस हुए ||१४||
सन पैंसठ मास दिसंबर का, उत्तरार्ध अंत हिममय दिन था |
स्पष्ट रूप से संयुग का, पाकेश-बदन निर्घोषण था ||१५||
तब सत्य सत्य ही है आखिर, विन परचाये ये प्रकट हुई |
आक्रामक से बदला लेने, भारत की सेना निकट गई ||१६||
भारत की विपुल भुसंडी से गोले अंगार उगलते थे |
मनु यवन तरुण तरु संगर में, दावानल अमित निगलते थे ||१७||
पड़ गई मार विकराल काल, तब काल कराल भयाथल था |
भग्गी सी छाई सेनामें, मार्शल मानस भी आकुल था ||१८||
सब मित्र राष्ट्र , सीटो, सेंटो, स्तंभित और सशंकित थे |
बेजाँ रस्तेसे मित्र फंसा, मन मंदिर पूर्ण प्रकम्पित थे ||१९||
दर्रा हाजी पीर क्षेत्र को, किया हस्तगत कर संगर |
जेट विमानों को तबाह कर, दिखलाया निज शौर्य भयंकर ||२०||
दो धारों में सैन्य सजाकर, विक्रांत बाघ से टूट पड़े |
छम्ब क्षेत्र को ग्रहण किया, गोले तोपों से उबल पड़े ||२१||
स्याल कोट लाहौर दुर्ग को, भून दिया अंगारों से |
काडगील लब्ध किया सहज में, भग्गी सी पड़ी प्रहारों से ||२२||
बादल दल सा घुमड़ घुमड़ छायादल मुग़ल भयावन था |
छितराने लगा क्षणिक भंगुर सा, भारत दल प्रबल प्रभंजन था ||२३||
हाय हाय तोबा तोबा का, अल्ला अकबर रव छाया |
हर हर बम बम का महोच्चार, वदले में संयुग विच छाया ||२४||
रक्तों की सरिता स्रावित हुई, कच्छप से मुंड भयंकर थे |
शफरी थी भुजा भुसुंडी असि, मृत रुण्ड मगर भयंकर थे ||२५||
काली कंकाली नृत्य करे, करते पिशाच तव रुधिर पान |
आँतों से खेले काक कंक, मानो धरणी ने किया दान ||२६||
आहव कटाह इक अश्मक का, बालू बारूद का ढेर घना |
प्रज्ज्वलित वह्नी भुसुंडी की, कोयला गोला ढेर बना ||२७||
सैनिक दल चना धानसे थे चटका देकर वे भुनते थे |
अथवा रस रुधिर जवानों का, अंग अंग पकवान सुपगते थे ||२८||
याह्या विक्रांत अचलसम था, लड़ता रहता था क्षेत्र छम्ब |
दिल दहल गया कम्पित होकर, जब पड़ा धमाके साथ बम्ब ||२९||
ले लिया छम्ब और उड़ी पुच्छ, अनवर सरि तवी को किया पार |
मियां अयूब पराजित थे, चौधरी चतुर की पड़ी मार ||३०||
खिसियाकर भारी गोले को, अमृतसर नगरी में डाला |
पर प्राण नहीं बच सकते थे, सच्चे वीरों से था पाला ||३१||
रसिया का रुख तत्क्षण पलटा, कह दिया "करो अब युद्ध बंद" |
परिषद् से होकर साधिकार, भारत आनन को किया बंद ||३२||
भोले शास्त्री को बहलाकर, बुलवाया उसने ताशकंद |
चव्हाण, स्वर्णसिंह गए साथ, लिख दिया पत्र वह मुहर बंद ||३३||
वाहिनी विजित भूमि छोड़े, भाबी सगर को करो बंद |
सुख शांति लहै जनता दोनों, मिट जाये सदा को दुरित द्वन्द ||३४||
जनता से वचनबद्ध थे वे, छोड़ेंगे हम न विजित क्षेत्र |
अस्ति नास्ति में लाल पड़े, कैसे स्वीकारें संधि पत्र ||35||
था कोसिगन का पूरा दबाव, हस्ताक्षरित था संधि पत्र |
काली थी निशा जगत काला, काला शारीर रह गया अत्र ||३६||
जनवरी मास छासठ सन था, भारत माता का लाल उठा |
पाते ही दुखद वृत्त को तब, भारत जन-गण बौखला उठा ||३७||
झंडे झुक गए शोक छाया, उजियाले में था अन्धकार |
हा ! लाल बहादुर चला गया, घर घर मातम था चीत्कार ||३८||
हे काश्मीर ! तेरे कारण, खोया उस लाल-बहादुर को |
शक्ति साहस से दबा दिया, जिसने अयूब से दादुर को ||३९||
भारत की जनता रो उठ्ठी, आँखों से आँसूं निकल पड़े |
हे काश्मीर ! तब रक्षक हित, बर वचन वृन्द यों निकल पड़े ||४०||
हे चित्र केतु कुल कलित केतु, हे शांति प्रचारक कर्मवीर |
असमय युग में तजि कहाँ गया बतला दे हमको धर्मवीर ||४१||
हे सत्य अहिंसा मग राही, हे अडिला वचन के शैल राट |
तेरी वाणी के सुनने को, उत्सुक थे जग के राष्ट्र राट ||४२||
भारत जननी का तू सपूत, अथवा नंदन सा ललित हार |
तू किस निंद्रा में पड़ा हाय, रे जाग जाग माँ को निहार ||४३||
उठ अरिहन्ता ! कर तुमुल घोष, थर्रा जावे अग जग दिगंत |
नापाक पाक होकर विमुक, हो सुखी देश का आदि अंत ||४४||
तू बापू वचनों का पोषक, भारत का भाग्य विधायक था |
तू पंचशील के निर्माता नेहरु का सच्चा पायक था ||४५||
चिर निद्रा में निद्रित होकर, बापू से मिलने चला गया |
अथवा उस दीनबंधु प्रभु को, सन्देश सुनाने चला गया ||४६||
तू चला गया नेहरु नभ पथ, विश्वास घात का सहि प्रहार |
रोते हैं बाल वृद्ध जन गण, स्मृति कर तेरा अमित प्यार ||४७||
भारतांग कुशल रक्षक, नाहर, रक्षा का मार्ग बता दे अब |
ललिता पति लाल बहादुर उठ, वस्तुत: तत्व बतला दे अब ||४८||
चिर आशीष दे हो देश एक, हो व्याप्त शांति जग में प्रकाम |
तू अमर ! अमर करनी तेरी, तुझको प्रणाम शत शत प्रणाम ||४९||
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