'काश्मीर के प्रति पुस्तक' को अलग-अलग पेजेस में डिवाइड किया गया है होम पेज पर ही आप ये पाएँगे :-


काश्मीर के प्रति
काश्मीर के प्रति - कवि की कलम से
काश्मीर के प्रति - सम्पादकीय
कश्मीर के प्रति - पाठकों के पत्र
काश्मीर के प्रति - प्रथम सर्ग
काश्मीर के प्रति - द्वितीय सर्ग
काश्मीर के प्रति - तृतीय सर्ग
काश्मीर के प्रति - चतुर्थ सर्ग
काश्मीर के प्रति - पंचम सर्ग


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आभार..........

कश्मीर के प्रति - पाठकों के पत्र

(१)

कश्मीर भारत का शास्वत काल से एक अभिन्न अंग रहा है |  उसकी प्राकृतिक छवि जन मानस विमुग्धकारी है|  इससे सम्बंधित अनेक पुस्तकें उपलब्ध हैं जो उसके प्राकृतिक सौन्दर्य , राजनैतिक इतिहास एवं युद्ध वर्णन पर पृथक पृथक प्रकाश डालती हैं किन्तु प्रस्तुत काव्य 'काश्मीर के प्रति' में कवि ने अपनी प्रखर एवं भावुक बुद्धि से उक्त तीनों तथ्यों का समन्वय काव्यात्मक भाषा में किया है  |

काव्य में मधुर, सरल, एवं सुबोध भाषा का प्रयोग किया गया है जिससे एक ओर काव्य प्रवाह बना रहता है और दूसरी ओर वह जनता को हृदयंगम कराने में सहायता देती है |  प्रस्तुत काव्य की विशेषता यह भी है कि लघु कलेवर में ही काश्मीर के सौन्दर्य एवं गौरव के साथ उसके भारत विलय एवं तदर्थ भारत-पाक युद्ध का स्वाभविक चित्रण किया गया है जो काव्य रसिकों को जहाँ आनंद प्रद है वहीँ साधारण जनता को वीरत्व,देशप्रेम एवं उत्साह की प्रेरणा देता है |

मेरे विचार से कविवर डॉ . शंकरलाल चतुर्वेदी (एम.ए.पी.एच.डी.) का यह कार्य इसलिए और भी स्तुत्य है कि उन्होंने राजकीय अध्यापन कार्य में व्यस्त रहते हुए भी इस प्रकार का काव्य सृजन किया |  मैं कवि के इस प्रयास पर उन्हें हार्दिक बधाई देता हूँ और शुभ कामना प्रकट करता हूँ |  मेरा विश्वास है कि प्रत्येक देशप्रेमी एवं शिक्षा संस्थान इसे ग्रहण कर कवि को प्रोत्साहन प्रदान करेगा |



शुभ चिन्तक
उमेश चंद (विंग कमांडर)
अध्यक्ष, वायुसेना एवं केंद्रीय विद्यालय
फरीदाबाद

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(२)

डॉ. शंकरलाल चतुर्वेदी के दो लघु काव्य प्रकाश में आये हैं |  एक 'काश्मीर के प्रति' और दूसरा 'दुर्गावतार' |  कवि ने दोनों काव्यों में अपनी भावुकता का परिचय दिया है |  दोनों काव्य 'गोपाल साहित्य सदन' मथुरा से प्रकाशित हुए हैं |  'काश्मीर के प्रति' की छपाई साफ़ और साज सज्जा दोनों साधारण हैं |

कश्मीर के प्रति का विषय भारत पाक युद्ध के परिपेक्ष्य में युद्ध वर्णन एवं प्रकृति चित्रण है |  इस काव्य के प्रणयन की प्रेरणा कवि को सन १९६५ में पाक-भारत युद्ध के अवसर पर हुई |  प्रकृति प्रेमी ह्रदय कवि 'शंकर जी' ने काश्मीर सुषमा के कई रंग-बिरंगे रमणीय चित्र अपनी लेखनी-तूलिका से उतारे हैं |  प्रकृति के विभिन्न रूपों का मनोहारी वर्णन पढ़कर पाठक आल्हादित हो जाता है |  एक चित्र अवेक्षनीय है -

"पर्वत पयस्विनी पादप गन , पुष्पावली पावन विविध रंग |
आभूषित कलित मृदुल मधु मय , प्रकृति वनिता के विविध रंग ||"

कवि ने प्रकृति का मानवीकरण करके कई स्थलों पर शब्दालंकार और अर्थालंकारों का कौशल पूर्ण प्रयोग किया है |  केशर, कस्तूरी, कमनीय काव्य, ललित कला और कला कंज प्रसू, कश्यप ऋषि की भूमि पर भारत के अतिरिक्त कौन अधिकार कर सकता है |  कश्मीर पर पाक के आक्रमण से कवि का मानस व्यथित हो उठा है और तभी उसके द्वारा काश्मीर के अतीत का गौरव गुणगान, महाराजा गुलाब सिंह से कर्ण सिंह तक का तथा पं. नेहरु , गाँधी, लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गाँधी का जयघोष इस काव्य में सुनाई पड़ता है |

युद्ध का वर्णन करके कवि ने भारतीय सेना की वीरता एवं आततायी आक्रान्ता की पराजय का परिचय दिया है|  रोष एवं जोश में कवि कहता है----

" हम उस अग्नि के पुतले हैं जो भस्म पाक को कर देवें |
  छाती पर चढ़ कर रक्त पियें, दुश्मन का दम दम में लेवें ||"

प्रस्तुत काव्य की भाषा प्रौढ़ , परिष्कृत एवं प्रभाव पूर्ण है |  इसमें वीर रस का अच्छा परिपाक हुआ है|  आधुनिक छंदमय ललित सरल शैली के प्रयोग से तन्मयता आ गई है |  काव्य पाँच सर्गों में विभक्त है |

आशा है इसी प्रकार 'कवि शंकरलाल चतुर्वेदी' भविष्य में भी नूतन काव्य सृजन कर माता सरस्वती के पाद-पद्मों में अर्पण करेंगे |



श्री गणेश लाल शर्मा 'प्राणेश'

फिरोजाबाद

सुधाकर जी द्वारा अर्जित सम्मान / पुरस्कार

*तत्कालीन वित्तमंत्री श्री मनमोहन सिंह द्वारा 'सेवा श्री' सम्मान
*साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा 'साहित्य वारिधि' सम्मान
*ब्रज साहित्य संगम द्वारा 'ब्रज विभूति' सम्मान
* माथुर चतुर्वेद केंद्रीय विद्यालय द्वारा 'कलांकर' सम्मान

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