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काश्मीर के प्रति
काश्मीर के प्रति - कवि की कलम से
काश्मीर के प्रति - सम्पादकीय
कश्मीर के प्रति - पाठकों के पत्र
काश्मीर के प्रति - प्रथम सर्ग
काश्मीर के प्रति - द्वितीय सर्ग
काश्मीर के प्रति - तृतीय सर्ग
काश्मीर के प्रति - चतुर्थ सर्ग
काश्मीर के प्रति - पंचम सर्ग


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आभार..........

काश्मीर के प्रति - द्वितीय सर्ग


जननी जन्म-भूमि तो होती है दिव से भी बढ़कर |
उससे जो प्रेम नहीं करता, वह हृदय नहीं समझो पत्थर ||१||

वह पराधीन होकर भय से, दुःख जनित अश्रु गण स्त्रवती हो |
नित दुष्ट विदेशी पद लुष्ठित, रहरह कर आंहें भरती हो ||२||

निज संस्कृति, भाषा, भाव, अर्थ, होते विलुप्त वह लखती हो |
भय खाकर अत्याचार सहे, बलि पशु सी पशुता सहती हो ||३||

सुख भोगे पुत्र रंगा अरि रंग, निज संस्कृति,भाषा, को खोता |
वह पुत्र नहीं नालायक है, सैंवर कंटक कृषि को बोता ||४||

ऐसी माँ से वन्ध्या अच्छी,नि: पुत्र समझ होती प्रसन्न |
निज पति से करुण याचना कर, हो मुक्त सद्य होती प्रसन्न ||५||

जिनकी माता परनर वश हो, जिनकी भूमि परहस्त गता |
वे भार सदृश इस पृथ्वी पर,जीवित ही है वे निहता ||६||

गाँधी गुरु तिलक गोखले ने यह सोच सुदृढ़ संग्राम रचा |
भारत हा-रत हो गया निरत, पूरब पश्चिम कुहराम मचा||७||

मोती के लाल जवाहर ने, जो तेरी निधि का नवल रत्न |
भारत माँ बंधन भंजन का, तन मन धन से कर दिया यत्न ||८||

पंद्रह अगस्त सेंतालिस में, भारत प्रखंड दो खंड बने |
नापाक पाक जिन्ना खातिर, पूरब पश्चिम के खंड बने ||९||

हर्षाम्बुधि उमड़ चला जन में, भारत नरनारी लीन हुई |
इन वर्ष हर्ष हिल्लोरों में सब प्रजा मनौवर मीन हुई ||१०||

मोती सुत आप्त सफलता से, भार्त्तण्ड सदृश यह देश हुआ|
गीता-पथ से उद्देश्य लव्ध, गाँधी ने संगर बंद किया ||११||

पर विधिना की विधि क्या होती, इसका रहस्य कब प्रकट हुआ |
दुःख में सुख की खेती होती, सुख में दुःख वारिधि विकट हुआ ||१२||

अक्टूबर में उत्तरार्ध अंत , अन्तक सा जिन्ना जालिम हो |
तेरे वसंत वर वर्णों पर भीषम ग्रीषम सा कायम हो ||१३||

गौरांग प्रभु प्रभुता पाकर, की संधि कबालियों से कराल |
तेरा वक्ष स्थल रोंदित हो, रे काश्मीर ! की, कपट चाल ||१४||

तू तब भी सुख की निंद्रा में, स्वप्निल था अथवा सुप्त पड़ा |
अपनी ही विकट समस्या में, रे काश्मीर! तू लुप्त पड़ा ||१५||

नृप हरीसिंह जागृत स्वामी, मेहर सँग निपट भयातुर थे |
वे आन-बान आरूढ़ वीर, नृपनीति विज्ञ समरातुर थे ||१६||

जिन्ना ने भेजा एक दूत, मेहरचंद से वह बोला |
"तुम सर्वश्रेष्ठ मंत्रीवर हो, यह हमने निज चित में तोला ||१७||

"दो परामर्थ यह वर्ष-शीश, हर्षित हो मेरा मित्र बने |
नाकेबंदी का अंत सद्य, काफ़िर ही फिर से शत्रु बने ||१८||

गाँधी हिंसा से डरता है, ब्रण सा हिय में पीड़ित होता |
उसके वचनों पर पंडित है, रण हेरि श्याम-शोणित होता ||१९||

राजेन्द्र शांति की प्रतिमा है, राधाकृष्णन आध्यात्म दूत |
काफ़िर कुरान का मौलाना, गाँधी का चेला पन्त पूत ||२०||

वे हैं गुलाम अतिभीरु प्रकृति, दासता सदैव सुहाती है |
भारत की राज्यश्री देखो, चुटकी में पदतल आती है ||२१||

मेहर ! तब हस्तामलक सिंह, तुम भारत के भावी स्वामी |
यह मुग्ध हिंदु-जनता-भीरु, अति सद्य बनेगी अनुगामी ||२२||

चुप हुआ चपरि चर यह कहकर, मेहर मंत्री का यह उत्तर |
मैं परवश हूँ, मम वश बाहर, हर-हरी सदृश, नाही उत्तर ||२३|

हरिसिंह सत्य स्वामी मेरे, सच्चे हिन्दू भारतीय वीर|
भारत का प्रेम रमा जिनके, रग रगमें रंजित, हो सुचीर ||२४||

तेरी चालों में फँसे वीर, मुझको नितराम इसमें संदेह |
पाकेश-अली से संधि करे, धारण कर हिन्दू की सुदेह ||२५||

अतएव पाक स्वामी से कह, नापाक भावनाएं तेरी |
मेहर-कमरी के रज्जन में, निष्फल सी हेरी अनहेरी ||२६||

यह तेरी कुटिल कूटनीती, कंटक सी पटतल रुदित हुई |
मनचाही तेरी हो जावै, यह असम्भावना सी इति हुई ||२७||

जा, चला भाग सन्देश-हार, जिन्ना से कह दे यवन-दूत |
अस्वीकृत तेरी कूटनीति, हम भारतीय हैं शक्तिपूत ||२८||

चर लौट गया रावलपिंडी, फ़ौरन अपना सा मुंह लेकर |
जिन्ना जनाब भोचक्के से, रह गए यथा मुंहकी खाकर ||२९||

मंत्री ने सोचा पाकनाथ, अब कपट कुचक्र चलावेगा |
नीति अनरीति कर अनीति, हम पर हर जुल्म ढहावेगा ||३०||

हरि सिंह प्रभु से हाल कहा, विनिमय विचार हो गया तुरंत|
हे काश्मीर ! तेरे जन का, हो जावे संकट सद्य अंत ||३१||

रातों ही रातों पवन पंथ, भारत की रजधानी पहुंचा |
पांडव की पावन नगरी में, मेहर मंत्री जाकर पहुंचा ||३२||

सरदार पटेल, जवाहर से, मंत्रणा गुप्त की,मिल तुरंत |
काश्मीर संधि स्वीकार हुई, टल जाय कष्ट घन, ज्यों तुरंत ||३३||

दोनों देशो में प्रेम हुआ, बंध गए वचन गुण में दोनों |
निश्चिंत हुए मेहर मंत्री, भारत तंत्री इससे दोनों ||३४||

अक्टूबर की छब्बिस दिनांक, तेरा भारत में विलय हुआ |
जिन्ना का, जिससे काश्मीर, पवि ह्रदय टूटकर खंड हुआ ||३५||

काली निशि नीरव अमाख्यात, राका उजियारी के ऊपर |
काली काली घनघोर घटा, छाई आभामय नभ ऊपर ||३६||

‘ओ अल्ला ओ अकबर अल्ला’, था तुमुल घोष भू अम्बर पर |
वह्रि-विस्फोटक यन्त्र युक्त, यवनों का दल था तव उर पर ||३७||

गृह-भवन, महल, मंदिर-मस्जिद, हो गए प्रकम्पित एक बार |
घुस गए दस्यु दल दानव से, करने को तुझ पर अना चार ||३८||

हे काश्मीर ! कलकंज मुखी, कलिका सी कोमल कामिनियाँ |
किन्नरी नरी भ्रमरी सी सब, दामिनि सी घन में भामिनियाँ ||३९||

उनका सौन्दर्य सुहाग भाग, उन दस्यु दुष्टने लेने को |
कर दिया नृत्य बर्बरता का, सर्वत्र खर्व धन लेने को ||४०||

अपहृत कर डाला सर्वस्व सत्व, निर्मूल्य निर्माल्य बना डाला |
तेरे ही सम्मख काश्मीर ! तव नलिनी पर पाला डाला ||४१||

कर दिये बंद, बंधनमय कर, अर्गला अयस दे वज्रघात |
दानवता के सन्मुख सब जन, पीपल पत्रों से थे निपात ||४२||

हाथों में गाढ़ी गई कील, नख दांतों को तोड़ा ताड़ा |
भय विह्वल सभी प्रकम्पित थे, मानो समीर बिन था जाड़ा ||४३||

कमरों डाले थूल रज्जु, था अयस अर्गला बंध कहीं |
था कशाघात या कराघात, अथवा असि का संघात कहीं ||४४||

था उभय श्री अपहृत करना, यवनों के हिय में लक्ष्य बना |
मृदु मधुर मानवों को डसने, दस्यु भुजंग प्रत्यक्ष बना ||४५||

था चीत्कार अबला शिशु का, कष्टों से प्रेरित थी कराह |
कामिनि गण का करुणा क्रंदन, थी व्याप्त सकल दिशि त्राहि त्राह ||४६||

नवल वधुटिन के सिंदूर, से भरे जा रहे वे झोली |
उष्ण रक्त की धारों से, खेल रहे थे वे होली ||४७||
 

पति की आँखों के आगे जब लूटा जाता सत-सतीत्व |
तव दानवता भोचक्की सी, खो बैठी नरता निजास्तत्व ||४८||

हिल उठा हिमालय अचल पुष्ट, मच गई सिन्धु में तब हलचल |
इन्द्रा सन रुद्रासन कम्पित, खो बैठा भारत भी निज कल ||४९||

तिरछे तेवर नेहरु, पटेल के, रद पुट रदन मध्य तब आये |
वक्र भ्रकुटी, आयत नेत्रों में डोरे लाल रोष के छाये ||५०||

यवन भुजंग निगलने को, करिअप्पा- खगपति को भेजा |
जिसने काश्मीर! तेरेढिंग, सैन्य तंत्र को सहज सहेजा ||५१||

लगी उगलने आग तोप तब,हथ गोले औ छूटे बम्ब |
लगे भागने मुग़ल लुटेरे, छम्म हुई हत्या तब छम्ब ||५२||

सिर कहीं, कहीं पर हाथ पड़ा, पग कहीं, कहीं धड़ टूट गिरा |
आँतों के साथ उदर फटकर, खरबूजा सा अरि-मुंड गिरा ||५३||

जिन्ना के निर्दय हत्यारे, उठे भाग ज्यों भागें स्यार |
मत्तमत्त गंज, क्षुधित वाघ से, सरदारों ने दी जब अति मार ||५४||

तटनी तवी, सिन्धु नद निर्झर, जम्बू के दृण दुर्ग धाम को |
अधिकृत किया करिअप्पा ने, छम्ब काडगिल थल ललाम को ||५५||

अपने परम पराक्रम द्वारा, नष्ट भ्रष्ट कर यवन व्यूह को |
बचा लिये आवाल वृद्ध के, प्राण प्रतिष्ठा तीय समूह को ||५६||

मोहमयी माता की गोदी, नवललना की मंगल माँग |
नारी शील प्राण बच्चों के, बचे सभी धन धर्म सभाग ||५७||

तीन चौथाई क्षेत्र मुक्त कर, शांति सौख्य निर्भयता देकर |
नेहरु के आदेश विवेश हो, रुका तभी दल चकिचित होकर ||५८||

हे काश्मीर !हे व्यास देश ! तेरे संकट का हुआ अंत |
मानो पतझड़ हिम ऋतु पीछे, छा गया निखिल ऋतुवर बसंत ||५९||

धीरे धीरे जो ध्वस्त प्रान्त, निर्माण हुए फिर से प्रकाम |
भारत की इंदिरा को मन से, दी लाल जवाहर ने अकाम ||६०||

तेरे कपूत इक बेटे ने, फिर शत्रु का दिया साथ |
तुझको वंचित कर काश्मीर ! इच्छा थी उसका बनूँ नाथ ||६१||

नेहरु का प्यारा कृपा पात्र, थी बाग डोर उस के करमें |
भड़काता रहता जनता को, ज्यो मगरमच्छ बस कर सर में ||६२||

उस कलहवाद से काश्मीर ! तू क्षुब्द हुआ फैला विषाद |
बलिदान हुए भारत सपूत, जा-जाकर -- श्यामा-प्रसाद ||६३||

जो नारी पति से कपट करे, संकट में साथ अनख छोड़े |
सुख भोगे, यौवन, संपत्ति में, दारिद्र जरा में मुख मोड़े ||६४||

जो मित्र मित्र से घात करे, आपद में करता परित्याग |
स्वार्थों के वशीभूत होकर, शत्रु से करता संधि राग ||६५||

सेवक मिथ्या हित बच कह कर, करता रहता विश्वासघात |
जनता को लेकर स्वयं डूबे, स्वामी को लाता विपति रात ||६६||

जो जननी जन्मभूमि पर, संकट बादल है लाता |
वह पुत्र नहीं प्रच्छन्न-शत्रु, अपनी करनी के फल पाता ||६७||

अतएव कर्ण प्रिय काश्मीर ! करदिया शेख को नज़रबंद |
जिन्ना का 'परिषद्' रसिया ने, 'वीटो' से मुख किया बंद ||६८||

तुझको हथियाने पाकेश-प्रभु, षड़यंत्र रचा वे करते थे |
पंद्रह अब्दों में छुट-पुट सी, दुर्घटना करते रहते थे ||६९||

जिन्ना, मिर्जा, गत अयूब आये, परिषद में जा जाकर भड़के |
नेहरु के जाते ही शत्रु, विन बादल तड़ित सहश तड़के ||७०||

आलसमेंसोयाकाश्मीर! गाता अनुराग भरा विहाग |
दुशमन छाती पर खड़ा हुआ, तू जाग जाग, यह राग त्याग ||७१||

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सुधाकर जी द्वारा अर्जित सम्मान / पुरस्कार

*तत्कालीन वित्तमंत्री श्री मनमोहन सिंह द्वारा 'सेवा श्री' सम्मान
*साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा 'साहित्य वारिधि' सम्मान
*ब्रज साहित्य संगम द्वारा 'ब्रज विभूति' सम्मान
* माथुर चतुर्वेद केंद्रीय विद्यालय द्वारा 'कलांकर' सम्मान

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